एक ऐसी सहेली।
सांझ का समय देविका पार्क में सैर करने के लिए जा रही थी .. वक्त का बदलाव ठहरता नहीं था ।
उसकी स्मृतियों में दमयंती का चेहरा आज भी ताजा था ,जिसने उसका विवाह वेद से करवाया था ...। उसे वह सब याद आ रहा था कैसे दमयंती के माता पिता से उसने डरते डरते उसने वेद के विवाह का प्रस्ताव रखा था , दमयंती के बाबू जी ने तो असहमती जताई थी और उसके लिए उसने कितने झूठ बोलने पड़े थे ,तब कहीं जाकर वेद से विवाह हो पाया था । जब उसे कहना पड़ा था कि वेद की सरकारी नौकरी लगने वाली है । तब कहीं जाकर विवाह के लिए वह राजी हो पाए थे ।
दमयंती के लिए वेद ने पढ़ाई लिखाई को महत्व दिया और अपनी पढ़ाई को जीवन का उद्देश्य बनाया , आखिर जीत पढ़ाई की ही हुई और वेद को सरकारी नौकरी मिल गई ।
विचारों में खोती जा रही थी और तभी पार्क में देविका को किसीने पीछे से पुकारा .".. जरा हट जाइए ..!"
उसने पीछे मुडकर देखा ...तो सामने एक बुजुर्ग महिला का हाथ पकड़कर एक युवक उसे ले जा रहा था ।
स्त्री उस युवक का हाथ पकड़कर बेंच में बैठ गई ,देविका को उसे जानने की उत्सुकता हो गई , क्योंकि उसे लग रहा था वह उसे जानती है ।
वह अपनी उत्कुंठा को काबू में न कर पाई और बोली,"-- इन्हें क्या हुआ था ..? इनकी आंखे..?"
वह युवक बोला ,"--यह मेरी मां है और अभी मेरी नई नौकरी यहां लगी है तो मैं इन्हें यहां ले आया ,एक हादसे में इनकी आंखें चली गई हैं । कहते हैं इनकी आंखों में कुछ कुछ रौशनी का अंश है ...हो सकता है कोई इन्हें आंखें दान दे दे तो यह नया जीवन पा सकेंगी..।"
तभी वह महिला बोली,"--आप कौन हैं..अपका स्वर जाना पहचाना सा लग रहा है ।"
",--जी ...मैं मैं .. देविका हूं और आप ..?"
",--मैं दमयंती हूं ...! ओहह तुम तो मेरी बिछड़ी हुई सहेली हो ..सोचा न था कभी यों चौराहे पर जिंदगी हमें यों खड़ी कर देगी ।"दमयंती ने आत्मीयता से कहा ।
",हां सच कहा..बहन ।" कहकर आपस में गले से लिपट गए और मन द्रवित होकर बह चला ।
मिलने का वादा कर दोनों घर को चल दिए..।
कुछ दिन बाद...
दमयंती पार्क में आई ...उसने अपने बेटे से पूछा ,"--कितना सुंदर नजारा है ..! पूरे पंद्रह साल बाद मुझे आंखें वापस मिली हैं.. मैं आज कितनी खुश हूं ..काश साथ में देविका होती तो कितना अच्छा लगता ..!"
",--हां ज़रूर लगता ...अगर वह होंतीं ..!" बेटा डूबे स्वर में बोला ।
तभी उसने बेटे से प्रश्न किया,"--- बताओ देविका मौसी कहां है ..? जरा उसे भी बुला लेते तो मुझे भी अच्छा लगता..।"
",--मां उन्हें भी बुला लेते पर ...।" उसका बेटा बोला।
",--पर क्या हुआ..? बेटा तुम चुप क्यों हो..? बताओ न ..! उसे कुछ हुआ था क्या ,तुम बोलते क्यों नहीं ..?" वह चिल्ला रही थी ।
जिस अस्पताल में आप थी वहीं उनका भी इलाज चल रहा था , उन्हें तो और भी गम्भीर बिमारी थी ..वे बच नहीं पाईं और इलाज में ऑप्रेशन के दौरान उनकी मृत्यु हो गई थी ।
",पर ... बेटा के संकोचवश शब्द बाहर नहीं निकल रहे थे ।
",--पर क्या बेटा तुम मायूस क्यों हो..?"वह बोली।
",मां .. जिसने तुम्हें मरने से पहले आंखें दीं हैं ...वह कोई नहीं .. देविका मौसी ही हैं ।" बेटा का गला भावुकता से भर गया ।
वह वक्त भी बीत गया और उस दिन से देविका रोज पार्क की सैर करने जाती ...।
उसे अपनी प्रिय सखी के अपने संग होने का अहसास जीवन पर्यन्त रहा ..।
पार्क में सैर करते हुए उसने ऊपर देखा सावन में छाए बादल उमड़ घुमड़ कर नाच रहे थे । जैसे ही एक बूंद उसकी आंखों में पड़ गई ..उसने कहा ,"--देविका तुम सचमुच देवी हो ,तुम्हारी नेकता बेमिसाल है ..लोग अंग दान इसलिए नहीं करते कि उन्हें मोक्ष नहीं मिलेगा,पर तुम्हें अवश्य मिलेगा ,मेरे संग...! आज तुम्हारी आंखें मेरा जीवन बन चुकी हैं ।"
दमयंती अपनी आंखें पोंछ रही थी .ऐसा लग रहा था जैसे देविका रो रही हो ।
#लेखनी #लेखनी कहानी का सफर
सुनंदा
RISHITA
27-Aug-2023 06:13 AM
amazing
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Sunanda Aswal
19-Aug-2023 11:24 AM
धन्यवाद आपका 🙏🙏
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madhura
19-Aug-2023 06:38 AM
nice
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Sunanda Aswal
19-Aug-2023 11:23 AM
धन्यवाद आपका 💖🙏
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